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Friday, July 13, 2012

मैं, घाटन की लड़की

(सआदत हसन मंटो की मशहूर कहानी बू से प्रेरित)
 न थे हम वादा,
न थे हम प्रेम,
हम थे बस वो
खामोश पल, जो
गिरा था साथ,
बूंदों की लड़ियों के,
उस बारिश में, जिसमें
नहा रहे थे पीपल के पत्ते |
हम नहीं थे छल भी,
हम थे, हम हैं, हम रहेंगे,
एक याद, एक अनुभव,
एक कसक, एक गंध,
एक-दूसरे के लिए
जो हर बारिश में,
जिसमें कि नहाते हैं पत्ते,
हो उठते हैं ताज़ा, यकायक
और दिलाते हैं एहसास
बाद सपने के टूटने के
कि नहीं है मुझे अधिकार
यूं ही लजा जाने का,
न करने का शिकायत,
क्यूंकि, देने पड़ सकते हैं
मुझे कुछ जवाब,
क्यूंकि, नहीं हुआ था तय
शब्दों में कुछ भी,
क्यूंकि, एक दुनिया है
उस पल से परे भी
होते हैं जिसमें
महत्त्वपूर्ण लोग
और मैं हूँ एक अनाम
लेकिन असली
घाटन की लड़की.