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Wednesday, August 31, 2011

नदी की धारा

हर बार ये बात मुझे हतप्रभ-सी कर जाती है कि परिवार हमेशा परफेक्ट कैसे होता है? सबसे ज्यादा सम्पूर्ण रिश्ते तो हमें बने-बनाये ही मिल जाते हैं! लोगों को प्यार-दोस्ती से शिकायत हो सकती है, लोग इन चीज़ों के बिना जी लेने का दम भी भर लेते हैं मगर जब परिवार की बात होती है तो हर एक को उसके मम्मी-पापा, भाई-बहन बेस्ट लगते हैं. इनसे जितना भी दूर रह लो, याद पर कभी धूल की एक बारीक-सी पर्त भी नहीं चढ़ती.
पिछले हफ्ते ही मम्मी-पापा से मिली थी. घर गयी थी, तब भी वापस आते वक़्त बुरा लगा था और आज फिर उनसे मिलने के बाद अलग होना बुरा लगा. हर बार ऐसा होता है, उन्हें पलट-२ कर इतनी बार देख लेने का मन करता है कि बस मन भर जाये (हालांकि ऐसा हो नहीं पाता). ऐसा और किसी के लिए नहीं होता. दुनिया मैं आपके आस-पास ऐसे और कितने लोग होते हैं जिन्हें आप अपनी तकलीफें सिर्फ ये सोचकर नहीं बताते कि उन्हें तकलीफ पहुंचेगी?
कई बार ऐसा लगता है कि बदले माहौल में एक अरसा गुज़ार चुकने के बाद मैं बदल गयी हूँ (समय-२ पर लोग भी ऐसा कुछ कहकर जता भी देते हैं और अब इन बातों का खासा फर्क भी नहीं पड़ता) फिर तब परिवार से एक मुलाक़ात होती है और मुझसे मैं वापस मिल जाती हूँ, झलकियों में नहीं, खण्डों में नहीं; अपने पूरे वजूद के साथ. अपने उस हिस्से को मैं बहुत चाहती हूँ मगर किसी मजबूर प्रेमी की तरह अपना नहीं पाती क्यूंकि अगले दिन से ज़िन्दगी फिर पटरी पर आ जाती है और उसी रफ़्तार से दौड़ने लगती है.
एक दिन के लिए ही सही, मैं वापस मैं होती हूँ. उस दिन मैं बिना किसी संशय खुद पर व्यंग्य करने वालों को कह पाती हूँ कि तुम अगर ऐसा कहते हो अभी मुझे जानते नहीं. मेरा व्यवहार शुष्क रेगिस्तान-सा सही, मगर इसमें अब भी नदी की एक धार पूरे वेग से बहती है और वो कभी नहीं सूखेगी.
क्या कोइ भी हमें कभी उतना प्यार कर पायेगा जितना हमारा परिवार हमसे करता है? उनके साधारण-से शब्दों के पीछे छिपी फिक्र, हर बार उनका भींचकर गले से लगा लेना; इस सबकी आर्द्रता आप महसूस कर सकते हैं, थोड़ी भी कोशिश किये बिना. आप फैशनपरस्ती में अपने बोलने का लहजा बदलकर सारी दुनिया में घूमें, लेकिन परिवार के साथ आप शुद्ध रूप से आप होते हैं, अमूमन खुश होते हैं और सर्वाधिक सशक्त होते हैं; उस पल पूरी दुनिया के सामने भी आप खुद को बौना नहीं समझते. क्या दुनिया में कोई और रिश्ता ऐसा है?

4 comments:

  1. इसमें अब भी नदी की एक धार पूरे वेग से बहती है और वो कभी नहीं सूखेगी.
    रचना का यही सार है , सुंदर अभिव्यक्ति बधाई

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  2. आप फैशनपरस्ती में अपने बोलने का लहजा बदलकर सारी दुनिया में घूमें, लेकिन परिवार के साथ आप शुद्ध रूप से आप होते हैं।

    सच्ची पोस्ट, अच्छी पोस्ट !!! :)

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  3. सच कहा …………बहुत सुन्दर पोस्ट्।
    विघ्नहर्ता विघ्न हरो
    मेटो सकल क्लेश
    जन जन जीवन मे करो
    ज्योति बन प्रवेश
    ज्योति बन प्रवेश
    करो बुद्धि जागृत
    सबके साथ हिलमिल रहें
    देश दुनिया के नागरिक

    श्री गणेशाय नम:……गणेश जी का आगमन हर घर मे शुभ हो।

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  4. सच्ची पोस्ट, अच्छी पोस्ट !!!

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