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Sunday, April 15, 2012

नज़र न लगे!!!

सोचा था, कई बार से गद्य लिख रही हूँ, इस बार कोई कविता डालूंगी मगर आज कुछ ऐसा हुआ कि फिर मन बदल गया.
पिछले काफी समय में मैंने कई टूटती-जुडती प्रेम कहानियां और सफल-असफल शादियाँ देखी हैं. उन्हें देखकर जाना है कि जो भी जैसा भी है, उसके पीछे सबसे अहम् कारण परिवार है. साधारणतः लोगों को अपने परिवार और प्यार में से एक को चुनना था और उन्होंने परिवार को चुना. कई लोगों ने खुद से जुडी बातें अपने परिवार से साझा नहीं की, ये सोचकर कि वो नहीं समझेंगे, किसी ने ये सोचकर कुछ नहीं कहा कि परिवार को दुःख पहुंचेगा. किसी ने चिल्ला-२ कर अपनी बात सामने रखी, किसी ने समझाना चाहा. अमूमन लोगों को अपने परिवार से शिकायतें ही रहीं. परिवार कभी आपका बुरा नहीं चाहता. समस्याएं तब आती हैं जब परिवार के लिए आपकी ख़ुशी की परिभाषा और आपके खुद के लिए ख़ुशी की परिभाषा मेल नहीं खाती.
आम तौर पर दुनिया देखने के बाद आपको अपनी चीज़ों की कद्र करना आ जाता है और अगर कद्र पहले से भी हो तो भी और बढ़ ही जाती है. ये नहीं कहूँगी कि मुझे अपने परिवार से कभी कोई शिकायत नहीं रही; मगर इतना कह सकती हूँ कि वो मेरे साथ-२ बढे हैं. २५ साल की रितिका की मम्मी वो नहीं हैं जो १५ साल की रितिका की मम्मी थीं. कई बार ऐसा लगा कि लोगों की बातें कितने आराम से सुन लेते हैं मगर समय के साथ-२ उन्होंने मुझे भी सुनना सीखा है. सबको और मुझको सुन लेने के बाद जो सही है, वो करना सीखा है.
मुझे ख़ुशी है कि उन्होंने चीज़ों को धीरे-२, मगर मुझसे एक कदम आगे रहते हुए सीखा है. इससे मुझे भी समझ विकसित करने का पूरा मौका मिला है.
मैं उनके सामने बोल सकती हूँ, बिना किसी डर के, ये मानकर कि वो मुझे सुनेंगे. मेरे बारे में फैसले लेने से पहले मुझे पूछेंगे. जब-२ बात करते हुए मुझे परेशां पाएंगे, तब-२ रोज़ मेरे तनाव को हल्का करने के लिए हलकी-फुलकी बातें करते रहेंगे या मेरा मनोबल बढ़ाएंगे. आमतौर पर हमारी परिभाषाओं में विरोधाभास  नहीं होते मगर जब-२ हमारी परिभाषाएं मेल नहीं खातीं, हम उन्हें बदल लेते हैं, बिना कोई बात अपने अहम् पर लिए. हमारे लिए हम ज्यादा ज़रूरी हैं.
मैं सचमुच बेहद भाग्यशाली हूँ. पूरे दिल से चाहती हूँ कि इस सम्बन्ध को किसी की नज़र न लगे.
मम्मी-पापा, मुझे गर्व है आप पर! 

6 comments:

  1. एक सार्थक पोस्ट, बहुत ही प्रेरक और हौसला देने वाल। शायद परिवार इसी को कहते है।

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  2. कुछ अलग सी पोस्ट सच्चाई से कही गयी बात अच्छी लगी

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  3. सार्थक एवं सारगर्भित आलेख....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/

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  4. ये रिश्ते बहुत ही अहम होते हैं, बस किसी को जल्दी समझ आ जाता है और किसी को कभी समझ नहीं आता।

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  5. Iss post k liye mai itna hi kahuga " नज़र न लगे " :)

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  6. माता-पिता के बारे में क्या कहा जाए... हमारे ऊर्जा स्रोत हैं वे...

    ऐसा बहुत कम होता है कि लिखने वाले के हर एक शब्द पर उसकी अपनी मुहर लगी हो अर्थात एक शब्द से ही समझ आ जाए कि किसका लिखा पढ़ रहें हैं, खुशी की बात है कि रितिका के लेखन में ये गुण आने लगा है. टिपिकल रितिका स्टाइल...मासूमियत से लबालब पोस्ट...


    पोस्ट पढ़ तो उसी दिन ली थी, जब लिखी गई थी...आज कुछ नया तलाशने आया तो सोचा कमेंट करता चलूं... हमारे ब्लाग पर भी कुछ नया है...

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