खामोश-सी रातों में तन्हाई आकर पसर जाती है,
कई रोज़ से आँखों में नमी-सी उतर आती है |
कुछ देखे- कुछ अनदेखे-से, पलकों में जो क़ैद हैं,
अधूरे ख़्वाबों के दरम्याँ, नींद आकर गुज़र जाती है |
तुमसे पूछे बगैर हमने, दे दिए थे जो तुम्हें,
हर दिशा में उन वादों की आवाजें बिखर जाती हैं |
जब भी बैठी आँखें मूंदे, उनमें तुम्हारा आना हुआ,
मेरे मन की सारी गलियाँ रोशनी से भर जाती हैं |
हर पदचाप, हर आहट पर, चौंक-सी उठती हूँ मैं,
उम्मीद की एक दस्तक और, घर की हर शै सँवर जाती है |
दुनिया की भीड़ में, जाना-सा एक चेहरा देखा था,
मेरी यादों में अक्सर उसकी तस्वीर-सी उभर आती है |
कई बार सोचती हूँ, कहीं दूर चली जाऊं,
पर, शहर की हर एक डगर तुम्हारे नगर जाती है |