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Monday, March 14, 2011

एक अधूरी बुनावट

                          सुनहरे ख्वाबों की रेशमी डोर हाथ से छूटी जाती है,
                          उधर तुमने मुँह फेरा, इधर साँस मेरी टूटी जाती है |

7 comments:

  1. बहुत उम्दा... फोटो कहां कहां से चुन के लगाती हो..!!!

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  2. वाह क्या बात कही है।

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  3. वाह! क्या बात कही है। धन्यवाद|

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  4. बहुत बढ़िया रितिका ...कम शब्द गहरी बात

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  5. Bahut Khoob!.......Dard me bhi kuchh baat hai...!!

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  6. चन्द लाइने हमारी तरफ़् से भी.....तुम्हारे दर्द को suit करती हुइ......


    हम तुमसे मिले तुम हमसे मिले,
    दिल मे जो थे अरमान सोये वो जगे॥
    आगाज़् भी तो ना हुआ था सही से अब तलक,
    कि उठा धुआ और हमारे दिल जले॥

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