आज अकेले सड़क पार करते हुए एक ख्याल आकर टकरा गया- मेरे दोस्त मुझसे कहते थे: "तुम अकेले सड़क पार करना कब सीखोगी?" उनमें से कुछ लोगों के लिए ये कहकर भूल जाने वाली बात होती थी तो कुछ लोग इसे सीधे मेरी आत्मनिर्भरता से जोड़ते थे; उन्हें लगता था कि चाहे कितनी ही छोटी क्यों न हो, जब तक बहुत ज़रूरी न हो, किसीसे मदद नहीं मांगनी चाहिए | उन लोगों के लिए मेरी दलील ये होती थी कि चाहे बात कितनी मामूली क्यों न हो, जब तक किसी का हाथ और साथ मिल रहा है, नहीं छोड़ना चाहिए | ये एक बहाना भर हुआ करता था, उस समय खुद के बचाव के लिए |
आज ऐसा लगा कि तब कितनी गहरी बात कह गयी थी | आत्मनिर्भरता ज़रूरी है लेकिन हर एक छोटी बात पर उसका ढोल पीटना बिलकुल ज़रूरी नहीं | इंसान को सिर्फ इतना मालूम होना चाहिए कि वह काबिल है, समर्थ है और खुद पर भरोसा होना चाहिए | आत्मनिर्भरता का ज्यादा दिखावा आपको अपनों से दूर कर देता है, कुछ छोटे ही सही, मगर अनमोल पल छीन लेता है |
अकेले सड़क पार करने से मैं आज भी उतना ही डरती हूँ जितना पहले डरती थी लेकिन यह पहले भी मालूम था और आज भी मालूम है कि कोई साथ नहीं होगा तो मैं खुद भी कर लूंगी और किया है | कभी किसी राह चलते से मदद नहीं मांगी, हाँ, दोस्त-यार साथ हुए तो कभी मौका भी नहीं छोड़ा और आज भी जबकि यह रोज़ की आदतों में से है, कभी मौका मिला तो नहीं छोडूंगी | वो झिडकियां और हिदायतें कहीं न कहीं अच्छी लगती हैं और अब आसानी से मिलती भी नहीं; न ही अब साथ मिलता है |
सोच तो सही है. :)
ReplyDeleteकम शब्दों में बड़ी बात बहुत अच्छा सन्देश देती हुई रचना , आभार
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन सन्देश दिया है आपने.... बढ़िया सोच!
ReplyDelete@Vandana Ji: Zaroor! :) Shukriya.
ReplyDeleteअच्छा लिखा है आपने। तर्कसंगत ढंग से विषय का विवेचन किया है। भाषा में भी सहज प्रवाह है।
ReplyDeleteमैने भी अपने ब्लाग पर एक लेख- कब तक धोखे और अत्याचार का शिकार होंगी महिलाएं- लिखा है। समय हो तो पढ़ें और टिप्पणी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
..अच्छा लगा।
ReplyDelete..आत्मनिर्भरता का ज्यादा दिखावा आपको अपनों से दूर कर देता है, कुछ छोटे ही सही, मगर अनमोल पल छीन लेता है
..सुंदर, सही बात।
हमे जो बात कहनी थी वो आपने कह ही दी है- आत्म निर्भरता जरूरी हो लकिन आत्मनिर्भरता के चक्कर में अपनों से दूर बिल्कुल नहीं होना चाहिए...और हां आज भी मौका मिले तो छोड़िएगा मत...
ReplyDeleteदिल को छूने वाली पोस्ट
अपनों का साथ, उनका प्यार, उनकी झिड़कियां सब अनमोल है...
अच्छा लिखा है आपने...ज़िन्दगी बहुत कुछ सिखा देती है...
ReplyDeletekhayalon ko shabdon mein utarne ka hunar to khoob hai aapka...
ReplyDeleteमेरी भी एक बात:
ReplyDeleteवैसे तो आज मैंने तम्हारा ब्लॉग visit किया था एक नए पोस्ट की उम्मीद से, बहरहाल नया पोस्ट तो मिला नहीं पर मेरी नज़र तम्हारी इस पोस्ट पर पड़ी और मुझे कल वाली बात याद आ गयी,सड़क पार करने वाली | सच ही कहा है तमने, हमें आत्मनिर्भर होना चाहिए पर उसका दिखावा ज़रूरी नहीं | जब अपनों का साथ मिल रहा हो तो इस मौके को छोड़ना नहीं चाहिए,सब कुछ किनारे रख कर बस पूरी तरह enjoy कर लेना चाहिए, और तुम यही करती हो. All-n-All मुझे तुम्हारी ये बात सबसे अच्छी लगी. yesterday you enjoyed everything, कोई मौका नहीं छोड़ा.
और हां जब कभी मौका मिले तो छोड़ना भी मत |
एक बात और,
दुबारा हमें सड़क पार करने कब आ रही हो??
@zaki: gurgaon me bhi sadkein hain.. hamein to kab se intezaar hai aapke yahan aakar basne ka! :)
ReplyDeleteWaise irada to hai kal ek nayi post dalne ka.. weekend par hi to time hota hai!
ReplyDeleteआत्मनिर्भरता का ज्यादा दिखावा आपको अपनों से दूर कर देता है, कुछ छोटे ही सही, मगर अनमोल पल छीन लेता है |
ReplyDeleterealy you have said the brilliant lines in simple way