आप भले ही होली खेलते हों या नहीं, मगर ये बात तो ज़रूर मानेंगे कि इस दिन की हर बात बाकी दिनों से बिलकुल जुदा होती है. मसलन : इस दिन मेरे घर में सबसे ज्यादा शरारती मेरे मम्मी-पापा होते हैं और हम सब उनसे जान बचाकर भाग रहे होते हैं. स्कूल या काम पर जाने में अधमरे हो जाने वाले लोग सुबह सबसे पहले उठकर तैयार हो जाते हैं. जब आप लिपे-पुते होने के बाद भी गुझिया या समोसे उठाकर खा लेते हैं तो डांट नहीं पड़ती बल्कि और लाकर सामने रख दिए जाते हैं.
इस दिन अपने दुश्मन से भी कुछ भी करवा लो, प्यार-२ में वो कर देगा. और तो और जो लोग शादियों में नहीं नाचते उन्हें इस दिन ज्यादा से ज्यादा दो-चार बार कहने की ज़रुरत होती है. गले मिलना तो इस त्यौहार का सबसे प्यारा हिस्सा है. आपका फेंका हुआ गुब्बारा किसी को कितनी जोर से चिपक जाये, एक बार बस 'बुरा न मानो, होली है!' कह दीजिये, चेहरे के भाव ही बदल जायेंगे. वैसे, चेहरा पहचान में आता भी किसका है. पूरे शरीर में एक वर्ग मिमी. का क्षेत्रफल भी बिना रंगा हुआ नहीं बचा होगा, फिर भी लोग रंग लगायेंगे. साल भर न हम नहाने पर इतनी मेहनत करते हैं और न ही निशानेबाजी का इतना अभ्यास, जितना कि इस एक दिन में हो जाता है.
लोगों को गुस्सा दिलाते-२ थक जायेंगे, मगर इस दिन कोई बुरा न मानेगा. ऐसे मौके रोज़-२ नहीं आते हैं.
होली खेलने के बाद कमरे में घुसने की इजाज़त तो होती नहीं है तो छत पर धूप में इकट्ठे होकर हमें नहाने के लिए अपनी बारी का इंतज़ार करना होता है. सिर्फ तभी ऐसा होता है जब हम कपड़े उन्हें पहने-२ सुखाते हैं या कहिये कि खुद धूप में सूख रहे होते हैं. जब कभी ये इंतज़ार लम्बा हो जाता है, उस दिन हमारी छत पर लगे नल के दिन बहुरते हैं. घर के इंजिनियर मिलजुलकर उसकी मरम्मत करते हैं और फिर छत पर नहाया जाता है.
किसी को भी अच्छे दिखने कि परवाह या होड़ नहीं होती होली पर. जब हम नहाने के बाद भी गुलाबी या नीले दिख रहे होते हैं बहुत दिनों तक तो ये सोचकर बेपरवाह हो जाते हैं कि सभी ऐसे ही दिख रहे हैं, या फिर, देखने वाले को भी तो पता चले कि हमने कितनी होली खेली है. फिर भी, गंदे होने के बाद साफ़ दिखने के सबके अपने अनोखे नुस्खे होते हैं. इनका अगर संग्रह किया जाये तो अच्छी-खासी मोटी किताब बनेगी.
आम तौर पर हम छुट्टियों के लिए बीमार पड़ने का बहाना बनाते हैं, मगर इस दिन हम मनाते हैं कि कुछ भी हो जाये बस बीमार न पड़ें जिससे पूरे मज़े लिए जा सकें.
होली का दिन हर बार बिलकुल पहले जैसा होता है. वही क्रिया-कलाप. सुबह उठकर थोडा खा पीकर बदन में तेल लगाना, पुराने कपड़े पहनना, होली खेलना, नहाना, खाना खाना (पूरी-सब्जी) और थक कर सो जाना. पता होता है कि क्या-२ होगा मगर फिर भी हर बार नया-नया ही होता है. हर तरफ खुशियाँ ही खुशियाँ नज़र आती हैं.
कल रात घर के लिए रवाना हो रही हूँ. उम्मीद करती हूँ कि इस बार की होली भी हमेशा की तरह यादगार रहेगी. आप सभी को होली की शुभकामनायें! :)
इस दिन अपने दुश्मन से भी कुछ भी करवा लो, प्यार-२ में वो कर देगा. और तो और जो लोग शादियों में नहीं नाचते उन्हें इस दिन ज्यादा से ज्यादा दो-चार बार कहने की ज़रुरत होती है. गले मिलना तो इस त्यौहार का सबसे प्यारा हिस्सा है. आपका फेंका हुआ गुब्बारा किसी को कितनी जोर से चिपक जाये, एक बार बस 'बुरा न मानो, होली है!' कह दीजिये, चेहरे के भाव ही बदल जायेंगे. वैसे, चेहरा पहचान में आता भी किसका है. पूरे शरीर में एक वर्ग मिमी. का क्षेत्रफल भी बिना रंगा हुआ नहीं बचा होगा, फिर भी लोग रंग लगायेंगे. साल भर न हम नहाने पर इतनी मेहनत करते हैं और न ही निशानेबाजी का इतना अभ्यास, जितना कि इस एक दिन में हो जाता है.
लोगों को गुस्सा दिलाते-२ थक जायेंगे, मगर इस दिन कोई बुरा न मानेगा. ऐसे मौके रोज़-२ नहीं आते हैं.
होली खेलने के बाद कमरे में घुसने की इजाज़त तो होती नहीं है तो छत पर धूप में इकट्ठे होकर हमें नहाने के लिए अपनी बारी का इंतज़ार करना होता है. सिर्फ तभी ऐसा होता है जब हम कपड़े उन्हें पहने-२ सुखाते हैं या कहिये कि खुद धूप में सूख रहे होते हैं. जब कभी ये इंतज़ार लम्बा हो जाता है, उस दिन हमारी छत पर लगे नल के दिन बहुरते हैं. घर के इंजिनियर मिलजुलकर उसकी मरम्मत करते हैं और फिर छत पर नहाया जाता है.
किसी को भी अच्छे दिखने कि परवाह या होड़ नहीं होती होली पर. जब हम नहाने के बाद भी गुलाबी या नीले दिख रहे होते हैं बहुत दिनों तक तो ये सोचकर बेपरवाह हो जाते हैं कि सभी ऐसे ही दिख रहे हैं, या फिर, देखने वाले को भी तो पता चले कि हमने कितनी होली खेली है. फिर भी, गंदे होने के बाद साफ़ दिखने के सबके अपने अनोखे नुस्खे होते हैं. इनका अगर संग्रह किया जाये तो अच्छी-खासी मोटी किताब बनेगी.
आम तौर पर हम छुट्टियों के लिए बीमार पड़ने का बहाना बनाते हैं, मगर इस दिन हम मनाते हैं कि कुछ भी हो जाये बस बीमार न पड़ें जिससे पूरे मज़े लिए जा सकें.
होली का दिन हर बार बिलकुल पहले जैसा होता है. वही क्रिया-कलाप. सुबह उठकर थोडा खा पीकर बदन में तेल लगाना, पुराने कपड़े पहनना, होली खेलना, नहाना, खाना खाना (पूरी-सब्जी) और थक कर सो जाना. पता होता है कि क्या-२ होगा मगर फिर भी हर बार नया-नया ही होता है. हर तरफ खुशियाँ ही खुशियाँ नज़र आती हैं.
कल रात घर के लिए रवाना हो रही हूँ. उम्मीद करती हूँ कि इस बार की होली भी हमेशा की तरह यादगार रहेगी. आप सभी को होली की शुभकामनायें! :)
holi ki bahut bahut shubh-kaamnayen
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