कल मैंने अपने कान की एक बाली खो दी, चाँदी की थी. वो खो गयी है, इसका भान होते ही पहले तो मैं थोड़ा परेशान हुई, फिर तुरंत एक वाकया याद आ गया. पिछले साल मेरी एक चाँदी की अंगूठी पानी में बह गयी थी, देहरादून में. तब घर लौटने पर मम्मी ने उसकी जगह दूसरी तो बनवा दी थी मगर साथ ही साथ मेरी सोने की बालियाँ भी बदल दी थीं, ये कहते हुए कि अगली बारी उनकी थी. उस दिन मैंने कहा तो कुछ नहीं लेकिन मन ही मन सोचा था कि क्या मैं सचमुच इतनी लापरवाह हूँ जितना वो मुझे समझती हैं? खैर, उनकी डांट से बचने के लिए और कुछ खुद भी परेशान होने की वजह से मैंने उसे (बाली को) ढूँढना शुरू कर दिया, मगर वो नॉएडा से गुडगाँव तक कहीं भी हो सकती थी और इतने घंटों के अंतर पर और इतनी छोटी-सी चीज़ का मिल पाना वैसे भी नामुमकिन था. मैं समझ चुकी थी कि अब कुछ नहीं हो सकता, मगर फिर भी, अन्दर से एक ख़ुशी-सी हो रही थी कि मम्मी मुझे कितना ज्यादा जानती हैं, खुद मुझसे भी ज्यादा. कल वो मुझसे मिलने आ रही हैं, और मैंने अभी भी उन्हें कुछ नहीं बताया है. अब जो होगा, कल ही होगा. उनकी नज़र से वैसे भी कुछ छुपा नहीं रह सकता.
फिलहाल एक ख्याल मेरे मन में बार-२ घूम-२ कर आ रहा है-- कुछ चीज़ों को खोने में सच में बड़ा मज़ा आता है, फिर कीमत चाहे कुछ भी हो!
फिलहाल एक ख्याल मेरे मन में बार-२ घूम-२ कर आ रहा है-- कुछ चीज़ों को खोने में सच में बड़ा मज़ा आता है, फिर कीमत चाहे कुछ भी हो!