बीते कई दिनों से नौकरी, ट्रेनिंग, exam और पता नहीं कहाँ-कहाँ उलझी हुई हूँ. कुछ सोचना भी चाहूँ तो walk -ins, नेटवर्किंग, मल्टीमीडिया वगैरह से बाहर नहीं आ पा रही. क्या सिर्फ यही बाकी रह गया है ज़िन्दगी में? बहुत सारी और चीज़ें भी तो हैं; जैसे कि बहुत सारे अनसुलझे सवाल जिनके जवाबों को मैंने वक़्त पर छोड़ रखा था और फिर कभी उनकी सुध नहीं ली; कुछ बेहद करीबी रिश्ते जहाँ मिलने कि इच्छा तो है, पर समझ नहीं आता कि बात क्या करूँ; बहुत सारे प्लान्स जिन्हें आने वाले प्लान्स में जोड़ती जा रही हूँ; बहुत कुछ ऐसा जो गलत था, फिर भी किया और भगवान् यहाँ तक कि खुद को भी अपनी बेबसी या मजबूरी तक नहीं बताई; और भी न जाने क्या-२. बीते साल किसी भी शादी में नहीं गयी, इसका अफ़सोस मना सकती हूँ या फिर कई दिनों से घर नहीं गयी, इस बात पर आंसू बहा सकती हूँ या फिर थोड़े ही दिनों में कॉलेज और हॉस्टल छोड़ने के दुःख और आगे नए सिरे से ज़िन्दगी सहेजने की चिंता में डूब सकती हूँ या बाकी सबकी तरह नए साल कि खुशियाँ मनाते हुए सबकुछ भूल सकती हूँ या फिर एक बार और सब कुछ वक़्त पर छोड़ सकती हूँ.
कल कुछ टैगोर साहित्य लेकर आई हूँ और अब मेरे पास करने को काम ही काम है; वो भी मेरा पसंदीदा.
रितिका जी नए साल की शुभकामनाओं के साथ आपको एक सुखद संयोग बताता हूं- आपने लिखा है कि बहुत सी चीजों को वक्त पर छोड़ रखा है, और आप टैगोर साहित्य खरीद कर लाईं हैं....आप चौंक जाएंगी जानकर कि गुरूदेव टैगोर ने एक जगह बिल्कुल आपके जैसी बात ही लिखी है...1913 में जब टैगोर ने नोबेल पुरस्कार स्वीकार किया तो राष्ट्रवादियों को ये बात बिल्कुल पसंद नहीं आई. टैगोर की आलोचना भी हुई. उस वक्त टैगोर ने अपने शिष्यों के नाम लिखे एक पत्र में लिखा है--- "कुछ प्रश्नों के जवाब समय के साथ खुद ही मिल जाते हैं..." ये पत्र शांतिनिकेतन विवि में आज भी सुरक्षित है...आपको ये भी बता दूं कि गुरूदेव ने 1915 में सर की उपाधि लौटा दी थी..
ReplyDeleteएक और जानकारी जिस गीतांजलि(अंग्रेजी अनुवाद)पर गुरदेव को नोबेल मिला है उसका अंग्रेजी अनुवाद करके आयरलैण्ड के कवि विलियम बटलर ईट्स ने गुरूदेव को बिना बताए नोबेल कमेटी को भेज दिया था.और बाद में इसी रचना को नोबेल मिल भी गया. ईट्स को खुद भी उनकी आयरिश कविताओं के लिए नोबेल मिल चुका है...गुरूदेव और ईट्स बेहद गहरे मित्र थे...
हरिवंश राय बच्चन ने इन्ही विलियम बटलर ईट्स पर अपनी पी.एच.डी कैम्ब्रिज विवि से पूरी की और ऐसा करने वाले वे पहले भारतीय बने.....
जब-तब ऐसा होता है कि मन में, समय के रहते-न रहते उथल-पुथल मचती है .....तो ज़रा मन के कान अमैंठो और कुछ भला-भला सा पढो ....वैसे भी ये काम तुम्हारा पसंदीदा है
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